विधा -गजल
शीर्षक:- पिता
मेरी हजार खताओं को दरकिनार कर गए।
निश्चिंत रहा जिनके साये में पिता गुजर गए।।
परिवार को संभालने में गुजारी जिंदगी अपनी।
निश्चिंत रहा जिनके साये में पिता गुजर गए।।
दुनिया की सब मुश्किलों से उबारा उन्होंने मुझे।
निश्चिंत रहा जिनके साये में पिता गुजर गए।।
मेरी जिंदगी बना दी खुद को खपाकर जिन्होंने।
निश्चिंत रहा जिनके साये में पिता गुजर गए।।
किससे करूं शिकायत और किससे सलाह लूं।
निश्चिंत रहा जिनके साये में पिता गुजर गए।।
जिंदगी की हकीकत को जाने मैंने अभी अभी।
निश्चिंत रहा जिनके साये में पिता गुजर गए।।