दर्द उल्फत के बाजार में: रूसवाईयों का जनाजा

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दर्द उल्फत को सरे बाजार करना हमें आता।
मेरी रूसवाईयों का जनाजा न गुज़र जाता।।

मैं भी सुकून से जी रहा होता जिंदगी को।
दर दर ठोकरें खाता हुआ नहीं नजर आता।।

कब से इंतजार कर रहा हूं इन खुशियों का।
कोई मेरे दरवाजे पे अच्छी खबर नहीं लाता।।

वो न आएं उनकी खबर तो हम तक आए ।
मेरी उल्फत का पैगाम उन तक पहुंच जाता।।

अब तो तन्हाईयां कचोटती हैं मुझे रातभर।
उन्हें याद किए बगैर दिन नहीं गुजर पाता।।

थक गया हूं मंजिल तक नहीं बढ़ते हैं कदम।
अंधेरी राहों में चिराग़ जलता नहीं नजर आता ।।

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