बाहर मुस्कुराता हूं अंदर ही अंदर

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बाहर मुस्कुराता हूं मैं ,
अंदर ही अंदर गम पालें हैं।
बेवफाई का हुआ असर,
दिल में छाले ही छाले हैं।।

लाख धोया दामन को,
मगर दाग धुल ने सके।
अपनों के दिये सितम,
से मुंह पे ताले ही ताले हैं।।

जिंदगी भी हमें अब एक,
बोझ ही दिखाई देती है।
अपना घर अंधेरे में डूबा है,
बाहर उजाले ही उजाले हैं।।

मुश्किलों ने घर देख लिया,
जब चाहे चली आती हैं।
एक हल होती नहीं तब तक,
घर में ढेरों डेरा डालें हैं।।

उम्मीद किससे करें भला,
अपने भी बने न्यारे हैं।
एक ईश्वर के आसरे ही,
हमने सब गम संभाले हैं।।

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