माया,झूठ और फरेब के सहारे ये जग चल रहा है।
मोम सा तन,प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
नकली चेहरे लगाये, मुह पे मुस्कान लिए, दुकान बैठे हैं ।
मोम सा तन ,प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
धमर् की आड़ लिए, मिथ्या ज्ञान लिए दरबार लेके बैठे हैं।।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
दिन-रात करें कुकमर्,मन में है पर्भु खौफ, मंदिर में बैठे हैं।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
दिल में है खोट,आत्मा रही कचोट,अंत समय आता देख।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
क्यों तू करे अिभमान,जा सद्गुरु शरण,ले ले नाम मंतर्।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
धन दौलत शान शौकत, बंधु सुत दारा सब यहीं रह जाते।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
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