माया,झूठ और फरेब के सहारे ये जग चल रहा है।
मोम सा तन,प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
नकली चेहरे लगाये, मुह पे मुस्कान लिए, दुकान बैठे हैं ।
मोम सा तन ,प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
धमर् की आड़ लिए, मिथ्या ज्ञान लिए दरबार लेके बैठे हैं।।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
दिन-रात करें कुकमर्,मन में है पर्भु खौफ, मंदिर में बैठे हैं।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
दिल में है खोट,आत्मा रही कचोट,अंत समय आता देख।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
क्यों तू करे अिभमान,जा सद्गुरु शरण,ले ले नाम मंतर्।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
धन दौलत शान शौकत, बंधु सुत दारा सब यहीं रह जाते।
मोम सा तन प्राण-ज्योति पल पल जीवन पिघल रहा है।।
बीबी साली दोनों खड़ी ,कांटे लागूं पाय।
बीबी साली दोनों खड़ी,कांटे लागूं पाय।
बलिहारी है बेलन की , बीबी दियो बताय।।
मन वैरी तू बावरा ,इत उत कूं काहे भटकाय।
तन बेचारा मन से कहें, क्यों मोकूं पिटवाय।।
काया तेरी हुई कंकाल सी,मन तेरा हुआ जवान।
मुड़ मुड़ पाछे देखता रहे, तेरी बुद्धि क्यों भरमाय।।
सुंदर साली की मुस्कान,दिल पर कटार चलाय।
ज्यों ही प्रेम में आगे बढ़े, आंखों में पत्नी छाय।।
कवि की ऐसी कल्पना क्यों बार बार ललचाय।
जाने कब की दुश्मनी हमसे कविता लिखवाय।।
एक तरफ कुआं गहरा दूसरी तरफ है खाई।
लिखें कविता तो पिटें ना लिखें तो धमकाय।।
सांझ आज फिर मिलने आई
नील गगन में बदली छाई,
धूप गयी अंधियारी छाई।
पंछी लौट चले अपने घर को ,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
ठंडी बयार चली पुरवा की,
कोयल मीठे स्वर में गाई।
पेड़ झूम रहे मस्त बागों में,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
दो प्रेमी बैठे सूने झुरमुट में,
लीन हुए प्रिया और प्रीतम।
प्रेम की बातें सुन प्रिया मुस्काई
सांझ आज फिर मिलने आई।।
जीवन रुपी इस बगिया में ,
जब जब यहां कली मुरझाई।
देख चांद की धवल रोशनी ,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
मन ही मन बैठी सोचती मैं,
जीवन निकल गया संघर्ष में।
उम्र ढली कुछ पल खुद में झांकूं,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
लगा दिया जीवन परवरिश में,
जिनको पाल रही मैं संघर्ष में।
छोड़ गए जीवन के इस मोड़ पर,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
बाहर मुस्कुराता हूं अंदर ही अंदर
बाहर मुस्कुराता हूं मैं ,
अंदर ही अंदर गम पालें हैं।
बेवफाई का हुआ असर,
दिल में छाले ही छाले हैं।।
लाख धोया दामन को,
मगर दाग धुल ने सके।
अपनों के दिये सितम,
से मुंह पे ताले ही ताले हैं।।
जिंदगी भी हमें अब एक,
बोझ ही दिखाई देती है।
अपना घर अंधेरे में डूबा है,
बाहर उजाले ही उजाले हैं।।
मुश्किलों ने घर देख लिया,
जब चाहे चली आती हैं।
एक हल होती नहीं तब तक,
घर में ढेरों डेरा डालें हैं।।
उम्मीद किससे करें भला,
अपने भी बने न्यारे हैं।
एक ईश्वर के आसरे ही,
हमने सब गम संभाले हैं।।
अंधेरे में भी रोशनी ढूंढते हैं
चंद लोग जीने का मुकाम ढूंढते हैं,
अंधेरे में भी लोग रोशनी ढूंढते हैं ।
ये दुनिया वो नहीं है जो दिखती है,
अंधेरे में भी लोग रोशनी ढूंढते हैं।।
जैसा हो नजरिया वहीं नजर आता,
किसी उजाले में अंधेरा नजर आता।
अच्छाई बुराई दोनों होती हैं सभी में,
अपने नज़रिए से लोग परख लेते हैं।।
कभी ये न सोचो लोग क्या कहेंगे,
उन्हें जो है कहना वो वही कहेंगे।
हमें लक्ष्य को पकड़ कर है चलना,
लोग चांद में भी दाग ढूंढते हैं।।
किसी से अपने दुख दर्द न कहिए,
पहले परखिए फिर दिल की कहिए।
भलाई का अब वो जमाना नहीं है,
खामोशियों से बस सब देखते रहिए।।
किसी को आप भला बुरा न कहिए,
जो मन को न भाए तो चुप रहिए।
जहां तक हो लोगों की मदद करिए,
किसी से कोई अपेक्षा न रख रखिए।।
मधुशाला
मंदिर मस्जिद बने मजहब को अलग अलग।
पंडित और मौलवी को मिलाती मधुशाला।।
जीवन जीने के चक्कर में थककर चूर हुआ।
कदम बहकते जा पहुंचे गम भुलाने मधुशाला।।
जाति पांत के झगड़े में ना जाने कितने कत्ल हुए।
सबको साथ बिठा महफ़िल जमाती मधुशाला।।
ना कोई अमीर यहां और ना ही कोई गरीब है।
सब के जाम टकराते मेल कराती मधुशाला।।
घर में दिल घुटता है तो चिंता की बात नहीं।
साथ दोस्तों के मौजमस्ती कराती मधुशाला।।
दिल टूटा तेरा इश्क में माशूका भी छोड़ गई।
सभी लोगों का दिल बहलाती ये मधुशाला।।
उसूलों पे जहां आंच आये
जीवन में कभी ऐसा मौका आए।
कहीं उसूलों पर जहां आंच आए।।
जब मन भी दुविधा में पड़ता जाए।
उस राह से मुंह मोड़ लिया जाए।।
तुमको पैदा किया मात-पिता ने,
उनका सेवा सम्मान किया जाए,
वो साक्षात देवता हैं घर में अपने,
उनका दिल से आशीर्वाद लिया जाए।।
अपने तुच्छ स्वार्थ की खातिर।
चंद सिक्कों में न बिक जाए।।
तुम पर अनैतिकता न हावी हो।
सिद्धांतों की बलि ने चढ़ जाए।।
यह मन हमेशा तुम्हें कचोटेगा।
एक पल न चैन से रहने देगा।।
ईश्वर को क्या मुंह दिखलाओगे।
इस बात का ध्यान रखा जाए।।
पुनरावृत्ति
तुमसे बस यही कहना चाहता हूं,
पुनरावृत्ति न हो खताओं की मेरी।
हर आता से सीखूं सबक मैं नया,
नई राह ऐसी पकड़ना चाहता हूं।।
बहुत कुछ दिया है ऊपर वाले ने,
शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।
अगर काम आ जाऊं मैं किसी के,
खुद को ऐसा बनाना चाहता हूं।।
हर मुश्किल आसान हो सकती है,
हौसला मैं ऐसा रखना चाहता हूं।
समय बदल देता है जब राहें,
खुद की नीयत अटल चाहता हूं।।
ज़माना कभी साथ नहीं देता किसी का,
अपने बाजुओं का भरोसा चाहता हूं।
मुझे कामयाबी मिल के रहेगी इक दिन,
खुद को फलक पे देखना चाहता हूं।।
बुजुर्गों का दुख
यह हमारे संस्कारों में कमी,
सिर्फ आधुनिक शिक्षा दे पाए।
थोड़ा जोड़ा होता अपने लिए तो,
क्यों हम आश्रित रह पाए।।
झुकती आंखों ने बताया
दुनिया भर के दर्दों को सीने में समाया।
मगर झुकती आंखों ने ये राज बताया।।
ग़ैर तो गैर थे अपनों ने भी ठुकराया।
मगर झुकती आंखों ने ये राज बताया।।