नील गगन में बदली छाई,
धूप गयी अंधियारी छाई।
पंछी लौट चले अपने घर को ,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
ठंडी बयार चली पुरवा की,
कोयल मीठे स्वर में गाई।
पेड़ झूम रहे मस्त बागों में,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
दो प्रेमी बैठे सूने झुरमुट में,
लीन हुए प्रिया और प्रीतम।
प्रेम की बातें सुन प्रिया मुस्काई
सांझ आज फिर मिलने आई।।
जीवन रुपी इस बगिया में ,
जब जब यहां कली मुरझाई।
देख चांद की धवल रोशनी ,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
मन ही मन बैठी सोचती मैं,
जीवन निकल गया संघर्ष में।
उम्र ढली कुछ पल खुद में झांकूं,
सांझ आज फिर मिलने आई।।
लगा दिया जीवन परवरिश में,
जिनको पाल रही मैं संघर्ष में।
छोड़ गए जीवन के इस मोड़ पर,
सांझ आज फिर मिलने आई।।